एम्स के पैनल ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में हत्या की आशंका से इनकार किया है। इसके बाद सीबीआई के सामने कुछ चुनौतियां होंगी, जिनका सामना जांच एजेंसी को करना पड़ेगा। एक एंटरटेनमेंट वेबसाइट से बातचीत में दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे एडवोकेट मोहम्मद मुसब्बिर अंसारी ने इन चुनौतियों के बारे में चर्चा की।
अहम हो जाती है सुसाइड नोट की भूमिका
अंसारी के मुताबिक, अदालत में किसी भी संदिग्ध को तब तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि उसका नाम सुसाइड नोट में न मिला हो। यदि उसकी गतिविधियों और पिछले व्यवहार के कोई सबूत हैं जो अदालत में लगाए गए आरोपों को साबित करते हैं, उस स्थिति में संदिग्ध को दोषी ठहराया जा सकता है।
संदिग्ध को सीधे दोष नहीं दिया जा सकता
अंसारी का यह मानना भी है कि सीबीआई को सुशांत या उनके परिवार द्वारा आरोपी रिया चक्रवर्ती के खिलाफ की गई पुरानी एफआईआर भी देखनी होगी। इसके अलावा उन्हें ईमेल, वॉट्सऐप चैट या टेलिफोन पर हुई बातचीत के सबूत इकट्ठे करने होंगे, जो फाउल प्ले का इशारा कर सकते हों। एडवोकेट ने यह भी कहा कि अगर कोई इंसान मेंटल हेल्थ से जूझ रहा था, तब संदिग्ध को सीधे दोष नहीं दिया जा सकता।
सुशांत के कमरे से नहीं मिला था सुसाइड नोट
14 जून को सुशांत सिंह राजपूत का शव मुंबई के बांद्रा स्थित उनके फ्लैट में पंखे से लटका मिला था। हालांकि, मुंबई पुलिस की मानें उन्हें उनके कमरे या घर से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला था। शुरुआती जांच में पुलिस ने इसे डिप्रेशन के कारण आत्महत्या का मामला बताया था।
सुशांत के फैमिली मेंबर्स, दोस्त और फैन्स लगातार दावा कर रहे हैं कि उनकी हत्या की गई थी। पिछले दिनों सीबीआई की मदद कर रही एम्स की टीम ने अपनी रिपोर्ट जांच एजेंसी को सौंपी थी, जिसमें उन्होंने लिखा है कि यह स्पष्ट तौर पर आत्महत्या का केस है, हत्या का नहीं।
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